जानिए छत्तीसगढ़ का पहला त्यौहार हरेली कब है और इसे किसानों का त्यौहार क्यों कहा जाता है।chhattisgarh ka pahla tyohar

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हरेली तिहार। छत्तीसगढ़ का पहला त्यौहार कहां जाने वाला हरियाली त्यौहार (hariyali tyohar) छत्तीसगढ़ में इस त्योहार बहुत बड़ा महत्व है, छत्तीसगढ़ में (hareli tihar) हरेली तिहार का श्रेय किसानों को ही जाता है क्योंकि यह त्यौहार खेती किसानी से जुड़ा हुआ है।
hareli tihar kab hai (हरेली तिहार कब है)
इस वर्ष 2020 को हरियाली त्यौहार (hariyali amavasya) 20 जुलाई दिन सोमवार श्रावण अमावस्या को मनाया जाएगा।
हरेली त्यौहार क्यों मनाया जाता है? (hareli tihar kyu manaya jata hai)
हरेली त्यौहार (hariyali amavasya tyohar) मनाने का मुख्य उद्देश्य फसल की रक्षा के लिए मनाया जाता है काकी किसानों द्वारा उपजा या हुआ फसल कीट प्रकोप बीमारी आदि से सुरक्षित बचा रहे इसीलिए किसान इस दिन अपनी फसल एवं खेती-बाड़ी में के उपयोग में आने वाले उपकरण की पूजा करते हैं।
हरियाली त्यौहार कब मनाया जाता है? (hareli tihar kab manaya jata hai)
हरेली का त्यौहार किसान अपने खेतों में फसल गाता है और जब वह हरा भरा हो जाता है एवं फसल उगाने के लिए शेष कार्य नहीं रहता अर्थात फसल उगाने का कार्य संपूर्ण हो जाने पर हरेली अमावस्या (hariyali amavasya) का त्यौहार श्रावण मास की अमावस्या को मनाया जाता है यह दिन अति शुभ माना जाता है। हरेली अमावस्या (hareli amavasya) को तंत्र विद्या के लिए भी अति शुभ दिन माना गया है।
लोगों का कहना है कि हरेली त्यौहार मनाने के बाद किसान अपने खेत में फसल बोने का कार्य नहीं करता है परंतु आज की भागदौड़ के दिन में एवं मौसम के बदलते मिजाज के कारण किसान बुवाई कार्य निश्चित समय अवधि में नहीं कर पाता है।
हरेली त्यौहार कैसे मनाया जाता है?hariyali tyohar kaise manaya jata hai
अमावस्या के दिन मनाया जाने वाला पर्व हरेली तिहार किसानों के लिए अति महत्वपूर्ण दिवस है इस दिन किसान अपनी हरे भरे खेतों में धूप दीप से पूजा कर खड़ी फसल की रक्षा हेतु दशमुर की पौधा की टहनी (कांटेदार पेड़) एवं भेलवा वृक्ष (जहरीली वृक्ष) की टहनी आदि को खेतों में गाया जाता है। किसानों का मानना है की इस पौधे से फसल की रक्षा होती है एवं बीमारी के प्रकोप से फसल को नुकसान होने से बचाती है।
हरेली त्यौहार (hariyali amavasya) को किसान अपनी पशुधन (गाय-बैल) की भी पूजा करते हैं और उन्हें अरंडी के पत्ते एवं नमक खिलाते हैं।
गांव की प्रमुख झांकर एवं बैगा द्वारा गांव के प्रमुख देवी देवता ठाकुर देव शीतला देवी आदि में पूजा कर घर-घर जाकर धान की बाली दशमुर की कांटा और भेलवा की टहनी मुख्य द्वार पर जानते हैं तथा परिवार की सुख-संपन्नता के लिए कामना करते हैं, बदले में उन्हें चावल एवं मुद्रा भेंट कर विदा किया जाता है।
किसानों की सेवा के लिए हर गांव में एक लोहार भी होता है जो किसानों की औजार उपकरण को सुधार का कार्य करता है। हरेली त्यौहार के दिन लोहार भी हर घर जाकर मुख्य दरवाजे पर कील ठोक कर परिवार की सदा-सुखी और संपन्नता की कामना करता है उन्हें भी एवज में चावल एवं मुद्रा भेंट की जाती है।
हरियाली त्योहार को किसान अपनी बैल एवं खेत में उपयोग आने वाले औजार हल,कुदाली,फौड़ा आदि का अक्षत, पुष्प , सिंदूर, गुलाल एवं रोटी चढ़ाकर पूजा की जाती है। इसी दिन से बच्चे बांस के द्वारा बनी हुई गेड़ी पर चढ़ा जाता है, गेड़ी चढ़ने से बच्चों को बहुत आनंद भी आता है। गेड़ी चढ़ने का परंपरा ना केवल मनोरंजन की दृष्टि से बल्कि इसे छत्तीसगढ़ की एक अभूतपूर्व परंपरा भी माना जाता है।
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